स्त्री विमर्श पर आप सभी मित्रों को समर्पित मेरी रचना—
आदम और हौवा
मनु और श्रद्धा
साथ-साथ ही चले थे
सृष्टी की सर्वोत्कृष्ट रचना रचने
धरा पर , युग निर्माण करने
फिर ; चलते-चलते किससे चूक हुई
नारी बंध गई –
कायदे-कानून के दायरे में
कैद हो गई पुरूषों के अहं में
कभी पिता ,कभी भाई
कभी पति और कभी बेटा
त्याग और तपस्या की मूरत
क्यो प्रताड़ित होती है पल -पल।
मनुस्मृति कहता है
जहाँ नारी की पूजा
वहाँ देवता का वास
नारी कैद की वस्तु नहीं
नारी शक्ति-साहस
आत्मबल की मूर्ति है
सदी बीतता है
उत्थान होता है
नारी स्वतंत्र होती है
फिर बार-बार क्यों होता है
निर्भया कांड , हाथरस कांड
बार-बार क्यों जलाई जाती है
दहेज के आग में
कहाँ गया नारी का आत्मसम्मान
क्या मोल लगाया
स्त्री -श्रम का ?????
‘अस्तित्व ‘ (रेखा सिंह )
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