स्त्री विमर्श पर आप सभी मित्रों को समर्पित मेरी रचना—

आदम और हौवा

मनु और श्रद्धा

साथ-साथ ही चले थे

सृष्टी की सर्वोत्कृष्ट रचना रचने

धरा पर , युग निर्माण करने

फिर ; चलते-चलते किससे चूक हुई

नारी बंध गई –

कायदे-कानून के दायरे में

कैद हो गई पुरूषों के अहं में

कभी पिता ,कभी भाई

कभी पति और कभी बेटा

त्याग और तपस्या की मूरत

क्यो प्रताड़ित होती है पल -पल।

मनुस्मृति कहता है

जहाँ नारी की पूजा

वहाँ देवता का वास

नारी कैद की वस्तु नहीं

नारी शक्ति-साहस

आत्मबल की मूर्ति है

सदी बीतता है

उत्थान होता है

नारी स्वतंत्र होती है

फिर बार-बार क्यों होता है

निर्भया कांड , हाथरस कांड

बार-बार क्यों जलाई जाती है

दहेज के आग में

कहाँ गया नारी का आत्मसम्मान

क्या मोल लगाया

स्त्री -श्रम का ?????

‘अस्तित्व ‘ (रेखा सिंह )

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Poems,

Last Update: 2024-09-23

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