ओ बसंत रूक जा

सरसों के फूल खिले पीले-पीले

मोजरायी गंध लिए पुरबा चले

बिरहन के आज क्यों जियरा जले

तपन और तुदन तू दे

सुलझा

ओ बसंत रुक ……………

गौना का दिन आया गाओ झूमर

दुल्हन ने ओढ़ ली पिली चुनर

नैना है लाज भरे बाली उमर

आँखों में नीर भरे पीहर

से दूर जा

ओ बसंत रूक जा ……………..

वीणावादिनी  आई घर आज

शिवजी बारात चले ढोलक और साज

फागुन की गूंज उठी टिनो का ताज

सबसे निराले हो तुम ऋतू राज

खुशिया मनाओ सारे गम भूल जा

ओ बसंत रूक

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मन कलियाँ खिलें छाया उल्लास

रंग-बिरंगे फूल खिले आया मधुमास

प्रीतम ना आये जियरा उदास

कोयल की कूक सून मन है उलझा

ओ बसंत रूक जा ………..

***    ************   ***            ( रेखा सिंह )

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Poems,

Last Update: 2024-09-12