मन के मरूस्थल में
चलता है सपनों का कारवाँ
साथ-साथ चलता है
समय के पहिये
साथ-साथ चलता है
नीला आकाश
राह दिखाते चाँद -तारे
शीतल बयार बहने लगा है
ऊँचे टीले पर ठहर जायेगी रात
सारंगी के धुन पर
कोहनी भर श्वेत चूडियाँ पहन
इन्द्रधनुषी घाघरा पहन
बनजारन आँखे करेंगी
कालबेलिया नृत्य
पौ फटते ही
चल पडेगा कारवाँ
चलना ही जिन्दगी है
ए लो ! मिल गया
मीठे झील का पानी
पेड़ों की छाँव
ललछौंह फल।
ऐ मन ! सपनों के कारवाँ को
यहीं रोक ले
यहीं जिन्दगी है
यहीं मंजिल है।
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(रेखा -सिंह -पुणे )
7 – 5 – 2017
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