हृद बारिश तरंगणी 

सकल क्षिति की छवि कलित 

निमिष यामिनी, ललित दामिनी 

प्रमोद अलि सुमन हरित अवनि का तू काजल है 

शत्-शत् तप तू नीर बहा 

बनता धीति कनक तपकर 

निर्मम मेदिनी गोद में फूली है 

अनीति का घूंघट डाले 

स्रोत आह्लाद का भूली है 

इला का सुरमित तू आँचल है……. 

अहा! सघन कुंज से 

फूट पड़ा काकुल-तान 

मनुज तरु विहंग के मिश्रित-गान 

पर, देख भुवन की रीत 

सुधा बरसा, हर्ष से नभ में इतराता 

बताते तू मेष, कुंजर छागल है. 

जग का रहस्य मालूम तुझे है 

निर्जन में गर्जन करता भुजंग 

नीरहीन तुझे पुकारते 

क्यों सिंधु में बरसाता सारंग 

रे मेघ, बता तू पागल है !

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Last Update: 2024-09-12