लौकिक-अलौकिक 

मैं नहीं जानती 

इसमें कौन है मौलिक ? 

आत्मा-परमात्मा 

सत्य क्या- 

तर्क में उलझा जीवात्मा….. 

द्वैत-अद्वैतवाद क्षण-क्षण करती प्रतिवाद, 

द्वैतवाद –

हृद से उठती लहर 

और फिर उसी में मिल जाती तरंग 

मंदिरों में होता गीतापाठ 

स्वर उठता पवन के संग 

वीणा से निकलते मधुर राग 

उसी में समा जाती लय उमंग….. 

अद्वैतवाद- 

तारे और ग्रह 

दोनों हैं अभिन्न अंग 

ग्रह का होता अलग अस्तित्व 

जो तारे से होता भंग-भंग। 

पर्वतों से निकलती तरंगिणी 

कल-कल छल-छल 

और हो जाते अलग रूप-रंग 

और स्वर्ण किरण में छुपा 

इंद्रधनुषी सतरंग।

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Last Update: 2024-09-03

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