वह मंदिर सदैव बंद रहता था मृत ज्वालामुखी के समान अकस्मात्- एक दस्तक हुई शायद आया हो…
थाल लेकर बढ़ती हूँ देवमंदिर की ओर पर; कदम रूक जाते द्वार पर किस देवता को पूजूँ…
मेरी पलायनवादी कविता सुन मही का कण-कण बोल उठा ऐ कवयित्री ! इस कलयुग को मत दोष…
(जयशंकर प्रसाद के प्रति) तुमने अतीत की गहराई में संपूर्ण कृति को डुबोया था, अंतराल से मुक्तामणि…
पूछते ये सभी उल्कापात क्या होता है? मेरा जवाब-तारों का टूटना मैं नहीं जानती थी किस-किस का…
लौकिक-अलौकिक मैं नहीं जानती इसमें कौन है मौलिक ? आत्मा-परमात्मा सत्य क्या- तर्क में उलझा जीवात्मा….. द्वैत-अद्वैतवाद…
कल्पना बढ़ती है सीमा की ओर और सीमा भागती है उससे बहुत दूर पर; कल्पना हारती नहीं …
हृद बारिश तरंगणी सकल क्षिति की छवि कलित निमिष यामिनी, ललित दामिनी प्रमोद अलि सुमन हरित अवनि…
प्रथम रश्मि के पड़ते ही मैंने माँगा था अमृत अबोध, असहाय, निर्बल को जननी ने दिया था…
गुमसुम है पेंड खफा-खफा भी इतने दिन कहाँ थी? आज पूछ रही हाल-चाल अब प्रस्थान का समय…