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सागर और लहर
अथाह समुन्दर की गोद में उछलती खेलती जलतरंगें सहस्त्रों मोतियों के हार पहने लहर, अप्सरा-सी रंग-उमंगें। सोचती हूँ- कितनी समीपता…
मृगतृष्णा
बह पिपासित चला जा रहा था आकुल, जलाशय की खोज में…. सुनसान, बियावान रेतीलें टीलों को पार कर दो घूँट…
अंतर्खावी
अरी ओ कल्पने, समेट-समेट शीशे-से टुकड़े-टुकड़े छितराये सपने पर देख चाहे परकटे पंछी हों या पिपासित हिरन गाना ना तेजाब…
दस्तक
वह मंदिर सदैव बंद रहता था मृत ज्वालामुखी के समान अकस्मात्- एक दस्तक हुई शायद आया हो कोई पुजारी ! …
देवता और गुरु
थाल लेकर बढ़ती हूँ देवमंदिर की ओर पर; कदम रूक जाते द्वार पर किस देवता को पूजूँ ? राम या…
सृष्टि कर्ता को मत दोष दो
मेरी पलायनवादी कविता सुन मही का कण-कण बोल उठा ऐ कवयित्री ! इस कलयुग को मत दोष दो। न भूलें…
अनमोल रत्न
(जयशंकर प्रसाद के प्रति) तुमने अतीत की गहराई में संपूर्ण कृति को डुबोया था, अंतराल से मुक्तामणि निकाला था। वह…
उल्कापात
पूछते ये सभी उल्कापात क्या होता है? मेरा जवाब-तारों का टूटना मैं नहीं जानती थी किस-किस का टूटना उल्कापात होता…
द्वैत-अद्वैत
लौकिक-अलौकिक मैं नहीं जानती इसमें कौन है मौलिक ? आत्मा-परमात्मा सत्य क्या- तर्क में उलझा जीवात्मा….. द्वैत-अद्वैतवाद क्षण-क्षण करती प्रतिवाद, …
कल्पना
कल्पना बढ़ती है सीमा की ओर और सीमा भागती है उससे बहुत दूर पर; कल्पना हारती नहीं पंख लगा पहुँचना…