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सागर और लहर

Rekha Singh By Rekha Singh

अथाह समुन्दर की गोद में  उछलती खेलती जलतरंगें  सहस्त्रों मोतियों के हार पहने  लहर, अप्सरा-सी रंग-उमंगें। सोचती हूँ- कितनी समीपता…

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दस्तक

Rekha Singh By Rekha Singh

वह मंदिर सदैव बंद रहता था  मृत ज्वालामुखी के समान  अकस्मात्-  एक दस्तक हुई  शायद आया हो कोई पुजारी ! …

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उल्कापात

Rekha Singh By Rekha Singh

पूछते ये सभी  उल्कापात क्या होता है?  मेरा जवाब-तारों का टूटना  मैं नहीं जानती थी  किस-किस का टूटना  उल्कापात होता…

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द्वैत-अद्वैत

Rekha Singh By Rekha Singh

लौकिक-अलौकिक  मैं नहीं जानती  इसमें कौन है मौलिक ?  आत्मा-परमात्मा  सत्य क्या-  तर्क में उलझा जीवात्मा…..  द्वैत-अद्वैतवाद क्षण-क्षण करती प्रतिवाद, …

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कल्पना

Rekha Singh By Rekha Singh

कल्पना बढ़ती है सीमा की ओर  और सीमा भागती है  उससे बहुत दूर  पर; कल्पना हारती नहीं  पंख लगा पहुँचना…