गुमसुम है पेंड

खफा-खफा भी

इतने दिन कहाँ थी?

आज पूछ रही हाल-चाल

अब प्रस्थान का समय आ गया

आम -बगान बिक गया है

मोटे दामों में

पंछी भी सारे ऊबड़ गये।

अब दुनियाँ उल्ट -पलट गई है।

अब धरती बहुत महंगी हो गई है।

ईंच-ईंच सोना उगल रही है।

अब मेरी जरूरत नहीं

देखो न मेरे साथी भी

एक -एक कर कट गये।

अलविदा…. अलविदा।

***🌲🌲🌲***

रेखा सिंह

बोकारो (झारखंड)

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Poems,

Last Update: 2024-09-03

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