गुमसुम है पेंड
खफा-खफा भी
इतने दिन कहाँ थी?
आज पूछ रही हाल-चाल
अब प्रस्थान का समय आ गया
आम -बगान बिक गया है
मोटे दामों में
पंछी भी सारे ऊबड़ गये।
अब दुनियाँ उल्ट -पलट गई है।
अब धरती बहुत महंगी हो गई है।
ईंच-ईंच सोना उगल रही है।
अब मेरी जरूरत नहीं
देखो न मेरे साथी भी
एक -एक कर कट गये।
अलविदा…. अलविदा।
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रेखा सिंह
बोकारो (झारखंड)
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