मेरी हास्य -व्यंग्य रचना बारिश की याद दिलाती है।😀😆
काहे कोयल शोर मचाये रे
मोहे अपना कोई याद आये रे……
जी हाँ !ऐसा ही होता है ।जब बरखा की नन्ही -नन्ही बूंदें रिमझिम गीत गाती है।जब बादल अपने काले-काले लट छलकाते हैं।जब धरती हरी -हरी चुनर पहन इतराती है।जब अमराई झूमता है।
जब कोयल मल्हार गाता है तब मनमोर थिरक उठता है। तब इंतजार में बैठी नायिका को प्रियतम की याद सताने लगती है। कोयल के कूक से हृदय में आग लग जाती है।
इस विरह वेदना को समझना है तो, कवि बिहारी के दोहे को पढ़िये।गोपियां जब कृश्ण के वियोग में यमुना के तीरे रोती थीं तो उनके गर्म आँसू से तलहटी का पानी खौल जाता था।
विरह वेदना से सिर्फ नयिका ही नहीं जलती।नायक का भी यही हाल है।आदिकवि कालिदा तो महाकाव्य ही लिख दिये
….मेघदूत। हमारे धन के देवता कुबेर एक यक्ष को अलकापुरी से निष्कासित
कर रामगिरि पर्वत भेज देते हैं।बर्षारानी जब सोलह श्रॄंगार कर आती है तो यक्ष को यक्षिणी की याद सताने लगी। फिर क्या था यक्ष मेघ को संदेशवाहक बना यक्षिणी के पास भेजता है ।अपने दिल का हाल यक्षिणी को बतलाता है।
प्रैम वियोग में कुछ भी नहीं सूझता। अब तुलसी बाबा तो रत्नावली के एक दिन की भी जुदाई नहीं सहन कर प्यये और मुर्दा को लकड़ी का तख्ती समझ उस पर बैठ बरसात की उफनती नदी को पार कर रत्नावली के पास पहुँच गये।और यही घटना उन्हें रघुनाथ से प्रीत लगाने की प्रेरणा दी।
अब पिल्मी गीतों पर गौर किजिए-
ओ सजना बरखा बहार आई
रस की फुहार लाई…..
तुमको पुकारे मेरे
मन के पपीहरा…
हमारी पुरानी गायिका उमादेवी(टुनटुन)तो साफ कह दिया-
जो तू नहीं तो
ए बहार क्या बहार है
अफसाना लिख रही हूँ…
तो मित्रों मैं तो यही कहूंगी;कि जब नायक नायिका गाये….अजहुँ न आये बालमा
सावन बीता जये …
,बहार जब भी आना प्रिय को साथ लाना।बरस कर गरज कर, हँस कर,खिल कर,कूहूक कर कभी न जलाना।
कह दो..कह दो कोयल से न गाये रे
काहे कोयल शोर मचारे रे…
***** ***** ****
रेखा सिंह
पुणे ,महाराष्ट्र
5/8/2022
Comments