कल्पना बढ़ती है सीमा की ओर
और सीमा भागती है
उससे बहुत दूर
पर; कल्पना हारती नहीं
पंख लगा पहुँचना चाहती है
सीमा के पास।
वेद-पुराण, रामायण-महाभारत
कल्पना है चिरस्थायी
मेघदूत कुमारसंभव
कल्पना है चिर स्थायी
पर उसकी सीमा असीम !
राजाओं के अनंत सुख की
कल्पना है पिरामिड
प्रियतमा की अमरप्रीत की
कल्पना है ताज महल
पर; उसकी सीमा-असीम !
पूरे ब्रह्माण्ड को
ढूँढ़ने चली कल्पना
ब्रह्म में ही लीन हुई
उड़नपरी कल्पना
और अधूरी रह गई
‘नासा’ की कल्पना !
नर्तकी नाचती है
थाप पर थाप दे
गायक गाता है ताल पर
ताल दे
किंतु उसका अंत नहीं
क्योंकि उसकी सीमा नहीं!
यही कसक उठती
कल्पना के मन में
और रवा खोजती
चीनी के कण में
पंख लगा पहुँचना चाहती
सीमा के पास
पर; उसका क्षितिज कहाँ !
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