वह मंदिर सदैव बंद रहता था
मृत ज्वालामुखी के समान
अकस्मात्-
एक दस्तक हुई
शायद आया हो कोई पुजारी !
संगमरमर के टुकड़ों को
नहलाया गया
काँटों को उखाड़ा गया
फूलों को सजाया गया
मन का पपीहरा
जो सदियों से चुप था
कुहुक उठा संगीत की झंकारों से
देखो न-
समन्दर का पानी रह-रह
छलक पड़ता कगारों से
सतरंगी दुनिया
खिलने लगी बहारों से अलविदा-
आज फिर मायूसी छा गई
वह पुजारी चला गया
हमेशा-हमेशा के लिए
ताला डालकर
उस मंदिर में !
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