वह मंदिर सदैव बंद रहता था 

मृत ज्वालामुखी के समान 

अकस्मात्- 

एक दस्तक हुई 

शायद आया हो कोई पुजारी ! 

संगमरमर के टुकड़ों को 

नहलाया गया 

काँटों को उखाड़ा गया 

फूलों को सजाया गया 

मन का पपीहरा 

जो सदियों से चुप था 

कुहुक उठा संगीत की झंकारों से 

देखो न-

समन्दर का पानी रह-रह 

छलक पड़ता कगारों से 

सतरंगी दुनिया 

खिलने लगी बहारों से अलविदा- 

आज फिर मायूसी छा गई 

वह पुजारी चला गया 

हमेशा-हमेशा के लिए 

ताला डालकर 

उस मंदिर में !

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Poems,

Last Update: 2024-09-16

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