थाल लेकर बढ़ती हूँ 

देवमंदिर की ओर 

पर; कदम रूक जाते द्वार पर 

किस देवता को पूजूँ ? 

राम या रहीम को 

शारदा या मरियम को 

कान्हा या मसीह को 

तुलसी या कबीर को 

क्या करूँ देवमात्र को पूजती हूँ, 

क्योंकि; सफल होता जीवन 

धर्म और कर्म के समन्वय से ।

जिज्ञासु मन बढ़ता है 

विद्या-मंदिर की ओर 

बरबस नयन झुक जाते 

श्रद्धा से- 

पर; किसके करूँ चरण-स्पर्श 

आचार्य या आचार्या के 

माता या पिता के 

या सिखलाते जो 

गुर दिनचर्या के 

क्या करूँ गुरुमात्र को पूजती हूँ 

क्योंकि पुस्तिका पलटते 

दब जाती त्रिऋण से !

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Poems,

Last Update: 2024-09-16

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