थाल लेकर बढ़ती हूँ
देवमंदिर की ओर
पर; कदम रूक जाते द्वार पर
किस देवता को पूजूँ ?
राम या रहीम को
शारदा या मरियम को
कान्हा या मसीह को
तुलसी या कबीर को
क्या करूँ देवमात्र को पूजती हूँ,
क्योंकि; सफल होता जीवन
धर्म और कर्म के समन्वय से ।
जिज्ञासु मन बढ़ता है
विद्या-मंदिर की ओर
बरबस नयन झुक जाते
श्रद्धा से-
पर; किसके करूँ चरण-स्पर्श
आचार्य या आचार्या के
माता या पिता के
या सिखलाते जो
गुर दिनचर्या के
क्या करूँ गुरुमात्र को पूजती हूँ
क्योंकि पुस्तिका पलटते
दब जाती त्रिऋण से !
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