मेरी पलायनवादी कविता सुन 

मही का कण-कण बोल उठा 

ऐ कवयित्री ! 

इस कलयुग को मत दोष दो। 

न भूलें यह आर्य निष्ठाओं का देश है 

और कर्मवाद आर्य की है सूक्तियाँ 

ओ अमर्त्यपुत्र ! 

क्यों भाग्य पर रोते हो 

देख अनजान पथ क्यों अधीर होते हो? 

ऐ कवयित्री ! 

सृष्टिकर्ता को मत दोष दो। 

क्योंकि ब्रह्म तक पहुँचने के लिए 

जपना पड़ता है 

कनक सा निखरने के लिए 

तपना पड़ता है 

ऐ कवयित्री ! 

तप्रनेवालों को मत ओस दो। 

ओ सूरज की ओर भागने वालों 

आसमां को छूने वालों 

मत लौटो पीछे की ओर 

मानवी इतिहास भी रोता है बादल-सा 

अतीत के पन्ने न उलटो बार-बार 

ऐ कवयित्री!

अतीतवादियों को मत जोश दो।

Categorized in:

Poems,

Last Update: 2024-09-16

Tagged in:

, ,