अगरबत्ती का पैकेट टेबल पर देख मैं मन ही मन बहुत खुश हुई। आज ही अगरबत्ती खत्म हुई थी।मैं प्यार से अपने छोटे बेटे को देख सोचने लगी ;कभी – कभी समझदारी का काम कर लेता है। पतिदेव हमेशा ताना मारते रहते हैं आजकल के बच्चों को घर के काम से कुछ लेना -देना नहीं रहता है । इसके उम्र मे मैं अपने घर का सारा काम सम्भालता था। ये सब तुम्हारे लाड-दुलार से बिगड गये हैं। अपने बच्चों को कुछ दुनियाँदारी भी सीखाया करो।
मैं खीज कर बोलती अभी छोटा है। धीरे-धीरे सब सीख जायेगा।
लेकिन : आज मेरी बारी थी। आप हर समय उपदेश देते रहते हैं। यह देखिये अगरबत्ती खत्म होते ही मेरे बिना बोले पूरे पाँच पैकेट अगरबत्ती ले आया है। पतिदेव मुस्करा कर बोले -क्या बोली मैं उपदेश देता हूँ। तुम माँ बेटे मेरा मजाक उड़ाती हो। और नहीं तो क्या। छोटा बेटा बहुत कम बोलता है । उसकी एक मुस्कान में ही कई सवालों के जवाब छिपा रहता है।
सुबह नहाकर पूजा करने बैठी। बेटा का लाया हुआ अगरबत्ती माचिस से जलाने लगी। हाय राम , ये क्या इसमें तो सुगन्ध ही नहीं है। उसी समय मैं बेटे को आवाज लगाई…कैसा अगरबत्ती ले आया जरा सा भी सुगन्ध नहीं है।चंदन,उल्लास,केवडा,मोगरा कुछ भी ले
आता ।ये क्या उठा लाया ।पापाजी ठीक ही बोलते है दुनियादारी सीखो नहीं तो ठगे जाओगे ।वह कुछ नहीं बोला चेहरा रूआंसी बना लिया। मैं फिर बोली एक पैकेट ले लेता पाँच -पाँच क्यों लिया। वह धीरे से बोला मम्मी अगरबत्ती बेचने वाला बहुत ही गरीब और बुड्ढा था ।वह मुझे बहुत आशिर्वाद दे रहा था ।मुझे तरस आ गई।मैं कभी अगरबत्ती देखती कभी बेटे को। अगरबत्ती धीरे -धीरे झर रही थी । मुझे उस अगरबत्ती से दुआओं की सुगंध आ रही थी।मैं गर्व से पतिदेव की ओर देख बोली यह सीखा है मेरा बेटा।
शायद वह भी यही सोच रहे थे ।मेरा बेटा औपचारिकता सीखा ।
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रेखा सिंह
पुणे, महाराष्ट्र
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